गुरुवार, 15 फ़रवरी 2018

सामाजिक चिंतन - भाग- 10
महापुरुषों के आदर्श अपनाओं
          महापुरुषों, संत, महात्मा, आत्मा, परमात्मा, प्रकृति, ज्ञान-विज्ञान, अंधविश्वास, ज्योतिष, कर्मकाण्ड, जीवनियाँ, संस्मरण आदि-आदि महत्वपूर्ण विषयों पर साहित्य रचनाऐं हुई है, और जो लिखा गया है, उस पर या तो आस्था के साथ या वैज्ञानिक आधारो पर ठोस धरातल को ध्यान देकर अध्ययन किया जा सकता है। एक लेखन पर चुनौतियाँ देकर ठोस मर्म समझकर अपने जीवन में अपनाया जाता है, या फिर जिस लेखन का कोई ठोस आधार ही नहीं है, उसे आस्था के साथ स्वीकार कर परम्परा से अपनाई जाने वाली पद्धति पर बिना सोंचे-समझे अंधभक्त बनकर अपना आचरण करने का स्वभाव बन जाता है।
          हम यहाँ सामाजिक चिन्तन कर रहे है, और जिसे चुनौति पूर्ण मान्यता मिलती है, उस लेखन से हम प्रेरणा लेकर अपना जीवन जीने की कला को विकसित करने पर ही विचार करेंगे।
          तथागत महात्मा बुद्ध द्वारा मानव मात्र को करूणा एवं शान्ति से सुख पूर्वक जीने की कला सिखाई है और बुद्ध द्वारा कहे गये शब्दो जिन्हें लेखन से जानकारी मिलती है। वे आदर्श हम अपने जीवन जीने की पद्धति में उतार सकते है। बुद्ध कभी किसी मानव-मानव में बैरभाव उत्पन्न करना नहीं सिखता है। सच्चे आचरण पर चलने के लिये प्रेरणा देता है। नारी का सम्मान करना मानव मात्र का कर्तव्य है। जो विषय हम अपनाते है, वह वैज्ञानितक धरातल पर आजमाया जा सकता है। इसमें किसी प्रकार का अन्ध-विश्वास पैदा नहीं होने देता है। हम सुख पूर्वक अपना कर्तव्य निभाते हुऐ आनन्द का जीवन बुद्ध के साहित्य के आधार पर जी सकते है। अपने परिजनों को विकास की और प्रेरित कर सकते है।
            हम कबीर की वाणियों को अपने जीवन में उतार कर सतर्कता से जीने का मार्ग अपना सकते है, किसी प्रकार के ढांेग और आस्था का मार्ग कबीर की वाणी में है, ही नहीं। ठोस धरातल पर खरा आदर्श मिलता है। हम कबीर का साहित्य पढ़-समझकर अपना जीवन सुखी बना सकते है।
           हम सामाजिक क्रांति के जनक महात्मा जोतीराव फुले के जीवन से, उनके द्वारा लिखे गये साहित्य की प्रेरणा लेकर एक सच्चा आदर्शवादी जीवन जी सकते है फुले हमें कहीं भी आस्था के भ्रमरजाल में फसने नहीं देते है। फुले का आदर्श तो स्पष्ट ठोस धरातल पर मार्ग दर्शन करता है, कि ‘‘आकारो से छूटकारा पाकर-विचारों को अपनाओं’’ पूजा से परमात्मा प्रसन्न नहीं होते, प्रार्थना में बड़ी शक्ति है। फुले ने तो अनेक कंटको का सामना करते हुऐ मानव उद्धार के लिये लेखन किया है, जो प्रत्येक काल में जैसे-जैसे पढ़ने का अवसर मिलता है, फुले के आदर्श मानव उत्थान में पूरी तरह सहायक है। हमें फुले साहित्य पढ़कर अन्धकार भगाना ही है।
           प्रथम शिक्षिका सावित्री माई फुले के जीवन से उनके द्वारा लिये गये साहित्य से प्रेरणा लेकर परोपकार शिक्षा, स्वास्थ्य की समझ विकसित करने का अवसर मिलता है। प्रत्येक मानव को फुले दम्पत्ति के आदर्शों को अपनाकर जीवन के अनेक झंझावातो से छूटकारा पाने का भी अवसर मिलता है। हम सावित्री माई फुले द्वारा सुझाये मार्गों को अपनाकर आदर्श मानव बन सकते है। जीवन सुखी रह सकता है।
            प्रथम टेªड युनियन नेता नारायण मेघाजी लोखण्डे की जीवनी से प्रेरणा लेकर एक सच्चा क्रांतिकारी आदर्श अपना सकते है। परोपकार ही जीवन का उद्देश्य बना सकते है।
            हम चिन्तन करे और स्वयं तो मानव जीवन का आनंद लेवे और दुसरों को भी प्रेरित कर सामाजिक महापुरूषो का साहित्य उनके आदर्शों को अपनाने हेतु चिंतन कर कुछ न कुछ जरूर कर सकते है।
          अपने जीवन का प्रत्येक क्षण अनर्थ आस्थाओं भटकाओं में उलझने से बचकर वैज्ञानिक आधारों से जो खरा तपा हुआ सत्य निकलता हो ऐसे अपना स्वयं का और दुसरो का आदर्श बनाने हेतु उपरोक्त महापुरूषों की प्रेरणा लेकर अपना आचरण करने की पद्धति अपनाने से अनेक कष्ट अपने आप समाप्त हो सकते है।
       आइये समाज के महापुरूषों के आदर्शों को अपनाना आज से ही प्रारंभ कर आनंद पूर्वक जीवन को प्रफुल्लित रखें।
    (रामनारायण चैहान)
       महासचिव
 महात्मा फुले सामाजिक शिक्षण संस्थान
          A-103, गाजीपुर, दिल्ली- 96
       मों. नं.- 9990952171
    Email- phuleshikshanshansthan@gmail.com


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें