शुक्रवार, 18 मई 2018

कई लोग हमसे सांखला राजपूतो के इतिहास के बारे में पूछ चुके है आज हम उसी बारे में बताने जा रे है -
सांखला परमारों की एक शाखा है| वि.सं. 1381 के प्राप्त शिलालेख में शंखकुल शब्द का प्रयोग किया गया है| धरणीवराह पुराने किराडू के राजा थे| धरणीवराह के अधीन मारवाड़ का षेत्र भी था| धरणीवराह के पुत्र वाहड़ के दो पुत्र सोढ और वाघ थे| सोढ के वंशज सोढा कहलाये| वाघ जैचंद पड़ियार (परिहार) के हाथों युद्ध में मारे गए| वाघ के पुत्र अपने पिता की मौत का बदला लेने की दृढ़ प्रतिज्ञ थे| वाघ ओसियां सचियाय माता के मंदिर गए| वहाँ सचियाय माता ने प्रसान्न होकर उन्हें दर्शन दिए तथा वरदान के रूप में शंख प्रदान किया| उन्होंने अपने पिता की मृत्यु का बदला लिया तभी से ये बैरसी के वंशज शंख प्राप्ति से सांखला कहलाने लगे|
इन्होने जैचंद के मूघिताड़ के किले को तुड़वाकर रुण में किला बनवाया| तब से ये राणा कहलाने लगे| वाघ के पुत्र राजपाल थे तथा राजपाल के तीन पुत्र छोहिल, महिपाल और तेजपाल थे|
मेवाड़ के महाराणा मोकल ने इन परमारों में विवाह किया| महाराणा कुम्भा इनके दोहिते थे|
पूर्व में महिपाल के पोते उदगा प्रथ्विराज चौहान के सामंतो में थे| राजपाल के पुत्र महिपाल के बेटे रायसी ने रुण आकर जांगलू के चौहानों को हराकर अपना राज्य कायम किया| ये सांखले रूणचे सांखला कहलाये|
राजस्थान के पंचवीरो में गिना जाने वाला जांगलू के हरभूजी सांखला बड़े सिद्ध पुरुष हुए| जोधपुर के संस्थापक राव जोधा का जब मंडोर पर अधिकार समाप्त हो गया और वह मेवाड़ की सेना से गुरिला यद कर रहे थे तोह जंगल में हरभूजी सांखला से भेंट हुई| हरभूजी ने जोधाजी को राज्य पुनह स्थापित होने का आशीर्वाद दिया तथा राज्य मेवाड़ से जांगलू तक फैलाने की भविष्यवाणी की जो सत्य हुई| वीर और बुद्धिमान नापाजी की महाराणा कुम्भा के यः बड़ी प्रतिष्टा थी| जोधाजी के पुत्र तथा बीकानेर राज्य के संथापक बीकाजी का वि.सं. 1522 में नापाजी ने ही जांगलू पर अधिकार था| इसलिए बीकाजी इनका बहुत सम्मान करते थे| नापाजी के वंशज नापा सांखला कहलाए|

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