रविवार, 27 अप्रैल 2014

माली समाज का इतिहास

jotirao-phule-and-savitribai-phule
 माली ” शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के शब्द माला से हुई है , एक पौराणिक कथा के अनुसार माली कि उत्पत्ति भगवान शिव के कान में जमा धुल (कान के मेल ) से हुई थी ,वहीँ एक अन्य कथा के अनुसार एक दिन जब पार्वती जी अपने उद्यान में फूल तोड़ रही थी कि उनके हाथ में एक कांटा चुभने से खून निकल आया , उसी खून से माली कि उत्पत्ति हुई और वहीँ से माली समाज अपने पेशे बागवानी से जुडा |माली समाज में एक वर्ग राजपूतों कि उपश्रेणियों का है |विक्रम सम्वत १२४९ (११९२ इ ) में जब भारत के अंतिम हिंदू सम्राट पृथ्वी राज चौहान के पतन के बाद जब शहाबुद्दीन गौरी और मोहम्मद गौरी शक्तिशाली हो गए और उन्होंने दिल्ली एवं अजमेर पर अपना कब्ज़ा कर लिया तथा अधिकाश राजपूत प्रमुख या तो साम्राज्य की लड़ाई में मारे गए या मुग़ल शासकों द्वारा बंदी बना लिए गए , उन्ही बाकि बचे राजपूतों में कुछ ने मुस्लिम धर्म स्वीकार कर लिया और कुछ राजपूतों ने बागवानी और खेती का पेशा अपनाकर अपने आप को मुगलों से बचाए रखा , और वे राजपूत आगे चलकर माली कहलाये !
माली समाज का इतिहास किसी भी जाती, वंश एव कुल परम्परा के विषय मे जानकारी के लिये पूर्व इतिहास एव पूर्वजो का ज्ञान होना अति आवश्यक है| इसलिए सैनी जाती के गोरव्पूर्ण पुरुषो के विषय मे जानकारी हेतु महाभारत काल के पूर्व इतिहास पर द्रष्टि डालना अति आवश्यक है| आज से ५१०६ वर्ष पूर्व द्वापरकाल के अन्तिम चरण मे य्द्र्वंश मे सचिदानंद घन स्वय परमात्मा भगवान् श्रीकृषण क्षत्रिय कुल मे पैदा हुए और युग पुरुष कहलाये| महाभारत कई युध्दोप्रांत यदुवंश समाप्त प्राय हो गया था| परन्तु इसी कुल मई महाराज सैनी जिन्हे शुरसैनी पुकारते है| जो रजा व्रशनी के पुत्र दैव्मैघ के पुत्र तथा वासुदेव के पिता भगवन श्रीकिशन के दादा थे| इन्ही महाराज व्रशनी के छोटे पुत्र अनामित्र के महाराज सिनी हुये, इस प्रकार महाराज शुरसैनी तथा सिनी दोनों काका ताऊ भाई थे| इन्ही दोनों महापुरुषों के वंशज हम लोग सैनी क्षत्रिय कहलाये|
कालांतर मई वृशनी कुल का उच्चारण सी वृ अक्षर का लोप हो गया और षैणी शब्द उच्चारित होने लगा जो आज भी उतरी भारत के पंजाब एव हरियाणा प्रांतो मे सैनी शब्द के एवज मे अनपढ़ जातीय बंधू षैणी शब्द ही बोलते है, और इसी सिनी महाराज के वंश परम्परा के अपने जातीय बह्धू सिनी शब्द के स्थान पर सैनी शब्द का उच्चारण करने लगे है| जो सर्वथा उचित और उत्तम है| कालांतर मे वृशनि गणराज्य संगठित नहीं रहा और भिन्न भिन्न कबीलों मे विभाजित होकर बिखर गया| किसी भी भू भाग पर इसका एकछत्र राज्य नहीं रहा किन्तु इतिहास इस बात का साक्षी है| की सैनी समाज के पूर्वज क्षत्रिय वंश एव कुल परम्परा मे अग्रणी रहे है|
महाभारत काल के बाद सैनी कुल के अन्तिम चक्रवर्ती सम्राट वीर विक्रेमादित्य हुए है जिन्हे नाम पर आज भी विक्रम सम्वत प्रचलित है| इससे यह स्पष्ट है की सैनी जाती का इतिहास कितना गोरवपूर्ण रहा है| यह जानकर सुखद अनुभूति होती है की हमारे पूर्वज कितने वैभवशाली वीर अजातशत्रु थे| भारत राष्ट्र संगठित न रहने पर परकीय विदेशी शासको की कुद्रष्टि का शिकार हुआ तथा कुछ शक्तिशाली कबीलों ने भारत को लुटने हेतु कई प्रकार के आक्रमण शुरू कर दिये, यूनान देश के शासक सिकंदर ने प्रथम आक्रमण किया किन्तु पराजित होकर अपने देश यूनान वापस लोट गया|
इसके बाद अरब देशो के कबीलों ने भारत पर आक्रमण कर लूटपाट शुरू कर दी और भारत पर मुस्लिम राज्य स्थापित कर कई वर्षो तक शासन किया| इसके बाद यूरोप देश के अग्रेज बडे चालाक चतुर छलकपट से भारत पर काबिज हो गये| अन्ग्रजो ने भारत के पुराने इतिहास का अध्यन करने यहा के पूर्व शासको एव जातियों के इतिहास की जानकारी हेतु कई इतिहासकारों को भारत की भिन्न प्रांतो मे इतिहास संकलन हेतु नियुक्त किया | एक प्रसिध्द अंग्रेज इतिहासकार ‘परजिटर’ ने भारत की पोरानिक ग्रंथो के आधार पर अपने वृशनी वंश का वृक्ष बिज तैयार किया जिसका भारत के प्रसिध्द इतिहासकार डा.’ए.डी.पुत्स्लकर ‘ एम.ए.,पी एच डी ने भी इस मत का प्रतिपादन किया है| वृशनी (सैनी) जाती के महाराज वृशनी के बाबत अग्रेजी मे लिखा ” Vrishanis youngest son Anamitra have a son and their desiendents were called ” Saiyas “(See Anicient Indian Hostorical Traditio 1922 page 104-105-105)” महाराज वृश्निजी के चोटी पुत्र अनामित्र के महाराज सीनी हुये इसी सिन्नी शब्द का पर्यायवाची शब्द ‘सैनी’ हुआ जिनकी वंशज कहलाते है| (देखे भारत के प्राचीन इतिहास के संकलन मे सं १९२२ मे पेज नं. १०४ सी १०६ तक )|
इस प्रकार भारत के प्राचीन ग्रंथ इतिहास पुरान तथा महाभारत के अनुशासन पर्व मे भी महाराज सैनी के सम्बन्ध मे उल्लेख मिलता है| १. वायु पुराण अध्याय ३७ शुरसैनी महाराजर्थी एक गुनोतम तथा श्लोक १२९ जितेन्द्रिय सत्यवादी प्रजा पालक तत्पर : २. महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय १४९ ‘सदगति स्तक्रती संता सदगति सत्य न्याय परायण’ तथा श्लोक ८८ मे शुर सैनी युद्ध स्न्निवास सुयामन: महाराज शुरसैनी चन्द्रवंशी सम्राट थे इनका राज्य प्राचीनकाल की हस्तिनापुर (वर्मन दिल्ली क्षेत्र पंजाब तथा मथुरा वृदावन उतर प्रदेश) मे फैला हुआ था|इसका वर्णन चाणक्य श्रिषी ने चन्द्रगुप्त मोर्य के शासनकाल मे २५० वर्ष पूर्व था उसका वर्णन कोटील्य अर्थशास्त्र मे किया है की यदुवंश (षैनी) राज्य एव सूर्यवंशी गणराज्य बिखर चुकाई थे| इन राजपरिवारो के कुछ शासको ने बोद्ध धर्म ग्रहण कर लिया कुछ एक ने जीविकोपार्जन के लिय कृषि को अपना लिया|
यूनान के सिकंदर के साथ जो यूनानी इतिहासकार भारत मे आये थे| उन्होने इतिहास संकलन करते समय यदुवंशी तथा सैनी राजाओ मे उच्च कोटी की वीरता और क्षोर्य के साथ साथ उन्हे अच्छ कृषक भी बताया तथा कोटीलय के अर्थक्षास्त्र मे उल्लेख मिला है की क्षत्रियो मे वैक्ष्य वृति (व्यापर ) करने वाले बुद्धिजीवी भी थे| रामायण काल के रजा जनक कहती है की हल चलते samay सीता मिली इस कथा का भाव कुछ भी हो यह घटना इस तथ्य को प्रतिपादित करती है की रामायण काल के रजा भी खैतिबादो करती थे| प्रसिद्ध साहित्यकार कक्शिप्रसाद जायसवाल तथा अंग्रेज इतिहासकार कर्नल ताड़ जिसने राजस्थान की जातियों का इतिहास लिखा है ने क्षुर्सैनी वंश को कई एक ग्न्राज्यो मे बटा हुआ माना है| इन इतिहासकारों के अलावा चिन देश के इतिहासकार ‘मैग्स्थ्निज’ ने काफी वर्षो तक भारत मे रहकर यह कई जातियों कई भ्लिभाती जाच कर सैनी गणराज्यों के बाबत इतिहास मे उल्लेख किया है| इन आर्य शासको का राज्य अर्याव्रता तथा यूरोप के एनी नगरों तक था| महाभारत कई मासा प्रष्ठ १४९-१५० और वत्स पुराण अध्याय ४३ शलोक ४५ से यह पता चलता है कई शुरसैनी प्रदेश मे रहने वाले शुरसैनी लोग मालवे (मध्य प्रदेश) मे जाकर मालव अर्थात माली नाम से पहचाने जाने लगे| कालान्तर मे इन्ही मालवो मे चक्रवर्ती सम्राट वीर विक्रमादित्य हुये जिनके नाम से विक्रम सम्वत चालू हुआ| यह सम्वत छटी शताब्दी से पहले माली सम्वत के नाम से प्रसिद्ध था| मालव का अपन्भ्रस मालव हुआ जो बाद मे माली हो गया| ऐसा मत कई इतिहासकार मानते है|
संकलन करते समय यदुवंशी तथा सैनी राजाओ मे उच्च कोटी की वीरता और क्षोर्य के साथ साथ उन्हे अच्छ कृषक भी बताया तथा कोटीलय के अर्थक्षास्त्र मे उल्लेख मिला है की क्षत्रियो मे वैक्ष्य वृति (व्यापर ) करने वाले बुद्धिजीवी भी थे| रामायण काल के रजा जनक कहती है की हल चलते samay सीता मिली इस कथा का भाव कुछ भी हो यह घटना इस तथ्य को प्रतिपादित करती है की रामायण काल के रजा भी खैतिबादो करती थे| प्रसिद्ध साहित्यकार कक्शिप्रसाद जायसवाल तथा अंग्रेज इतिहासकार कर्नल ताड़ जिसने राजस्थान की जातियों का इतिहास लिखा है ने क्षुर्सैनी वंश को कई एक ग्न्राज्यो मे बटा हुआ माना है| इन इतिहासकारों के अलावा चिन देश के इतिहासकार ‘मैग्स्थ्निज’ ने काफी वर्षो तक भारत मे रहकर यह कई जातियों कई भ्लिभाती जाच कर सैनी गणराज्यों के बाबत इतिहास मे उल्लेख किया है| इन आर्य शासको का राज्य अर्याव्रता तथा यूरोप के एनी नगरों तक था|
महाभारत कई मासा प्रष्ठ १४९-१५० और वत्स पुराण अध्याय ४३ शलोक ४५ से यह पता चलता है कई शुरसैनी प्रदेश मे रहने वाले शुरसैनी लोग मालवे (मध्य प्रदेश) मे जाकर मालव अर्थात माली नाम से पहचाने जाने लगे| कालान्तर मे इन्ही मालवो मे चक्रवर्ती सम्राट वीर विक्रमादित्य हुये जिनके नाम से विक्रम सम्वत चालू हुआ| यह सम्वत छटी शताब्दी से पहले माली सम्वत के नाम से प्रसिद्ध था| मालव का अपन्भ्रस मालव हुआ जो बाद मे माली हो गया| ऐसा मत कई इतिहासकार मानते है| अब भी पैक्षावर मे खटकु सैनी पायी जाते है| तथा स्यालकोट सन १९४७ से डोगर सैनियो से भरा हुआ पड़ा था, सैनी शब्द के विवेचन से सैनी समाज के अपने लोगो को भली भाती ज्ञान चाहिये कई हमारा सैनी समाज सम्वत १२५७ के पर्व महाराज पृथ्वीराज चोहान भारत मे कितने वैभवशाली एव गोरवपूर्ण थे, अरब देश के लुटेरे मोहम्मद गोरी जो सम्राट पृथ्वीराज के भाई जयचंद को प्रलोभन देकर पृथ्वीराज को खत्म कराकर दिल्ली का शासक बन बैठा| इसकी पक्ष्चात भारत पर लगातार मुस्लिम आक्रताओ ने हमले कर बहरत के तत्कालीन शासको को गुलाम बना लिया| इसी समय से क्षत्रिय वीर भारत के किसी भी प्रान्त मे संगठित नही रहे|
क्षत्रिय वीर अलग अलग रियासतो मे मुगलों से विधर्मियों से मिलकर अपनी बहिन बिटिया मुगलों को देने लगा गये| इससे राजस्थान के राजघराने के राजा अग्रणी रहे सिवाय मेवाड़ के म्हाराजाओ के| अन्य क्षत्रिय सरदार जो रियासतो के शासक नही थे किन्तु वीर और चरित्र से आनबान के धनी थे| उन्होने अपनी बहिन बैटिया की अस्मत बचाने के लिय क्षत्रिय वंश ( कुल छोड़कर ) इन क्षत्रियो से अलग हो गये| यह क्षत्रिय राजा राजस्थान मे अपना वर्चस्व कायम रखने हेतु अपने ही भाइयो को जिन्होंने ख्स्त्रिय कुल से अलग होकर दिल्ली के तत्कालीन बादशाह शहबुदीन मोहम्मद गोरी के पास अपने मुखियाओ को बेचकर कहला भेजा की अब हम क्षत्रियो से अलग हो गये| हमने अपना कार्यक्षेत्र कृषि अपना लिया| बादशाह को चाहिये ही क्या था? उसने सोचा कई बहुत ही अच्छा हुआ क्षत्रिय समाज अब संगठित नहीं रहा, क्षत्रियो कई शक्ति छिन्न भिन्न हो गये| अब आराम से दिल्ली का बादशाह बना रहूगा | विक्रम सम्वत १२५७ अथार्त आज से ८०० वर्ष क्षत्रिय समाज राजपूतो से अलग हुये और कृषि कार्य अपना कर माली बने| सैनी क्षत्रिय जो माली शब्द से पहचाने जाने लगे

माली समाज का इतिहास

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 माली ” शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के शब्द माला से हुई है , एक पौराणिक कथा के अनुसार माली कि उत्पत्ति भगवान शिव के कान में जमा धुल (कान के मेल ) से हुई थी ,वहीँ एक अन्य कथा के अनुसार एक दिन जब पार्वती जी अपने उद्यान में फूल तोड़ रही थी कि उनके हाथ में एक कांटा चुभने से खून निकल आया , उसी खून से माली कि उत्पत्ति हुई और वहीँ से माली समाज अपने पेशे बागवानी से जुडा |माली समाज में एक वर्ग राजपूतों कि उपश्रेणियों का है |विक्रम सम्वत १२४९ (११९२ इ ) में जब भारत के अंतिम हिंदू सम्राट पृथ्वी राज चौहान के पतन के बाद जब शहाबुद्दीन गौरी और मोहम्मद गौरी शक्तिशाली हो गए और उन्होंने दिल्ली एवं अजमेर पर अपना कब्ज़ा कर लिया तथा अधिकाश राजपूत प्रमुख या तो साम्राज्य की लड़ाई में मारे गए या मुग़ल शासकों द्वारा बंदी बना लिए गए , उन्ही बाकि बचे राजपूतों में कुछ ने मुस्लिम धर्म स्वीकार कर लिया और कुछ राजपूतों ने बागवानी और खेती का पेशा अपनाकर अपने आप को मुगलों से बचाए रखा , और वे राजपूत आगे चलकर माली कहलाये !
माली समाज का इतिहास किसी भी जाती, वंश एव कुल परम्परा के विषय मे जानकारी के लिये पूर्व इतिहास एव पूर्वजो का ज्ञान होना अति आवश्यक है| इसलिए सैनी जाती के गोरव्पूर्ण पुरुषो के विषय मे जानकारी हेतु महाभारत काल के पूर्व इतिहास पर द्रष्टि डालना अति आवश्यक है| आज से ५१०६ वर्ष पूर्व द्वापरकाल के अन्तिम चरण मे य्द्र्वंश मे सचिदानंद घन स्वय परमात्मा भगवान् श्रीकृषण क्षत्रिय कुल मे पैदा हुए और युग पुरुष कहलाये| महाभारत कई युध्दोप्रांत यदुवंश समाप्त प्राय हो गया था| परन्तु इसी कुल मई महाराज सैनी जिन्हे शुरसैनी पुकारते है| जो रजा व्रशनी के पुत्र दैव्मैघ के पुत्र तथा वासुदेव के पिता भगवन श्रीकिशन के दादा थे| इन्ही महाराज व्रशनी के छोटे पुत्र अनामित्र के महाराज सिनी हुये, इस प्रकार महाराज शुरसैनी तथा सिनी दोनों काका ताऊ भाई थे| इन्ही दोनों महापुरुषों के वंशज हम लोग सैनी क्षत्रिय कहलाये|
कालांतर मई वृशनी कुल का उच्चारण सी वृ अक्षर का लोप हो गया और षैणी शब्द उच्चारित होने लगा जो आज भी उतरी भारत के पंजाब एव हरियाणा प्रांतो मे सैनी शब्द के एवज मे अनपढ़ जातीय बंधू षैणी शब्द ही बोलते है, और इसी सिनी महाराज के वंश परम्परा के अपने जातीय बह्धू सिनी शब्द के स्थान पर सैनी शब्द का उच्चारण करने लगे है| जो सर्वथा उचित और उत्तम है| कालांतर मे वृशनि गणराज्य संगठित नहीं रहा और भिन्न भिन्न कबीलों मे विभाजित होकर बिखर गया| किसी भी भू भाग पर इसका एकछत्र राज्य नहीं रहा किन्तु इतिहास इस बात का साक्षी है| की सैनी समाज के पूर्वज क्षत्रिय वंश एव कुल परम्परा मे अग्रणी रहे है|
महाभारत काल के बाद सैनी कुल के अन्तिम चक्रवर्ती सम्राट वीर विक्रेमादित्य हुए है जिन्हे नाम पर आज भी विक्रम सम्वत प्रचलित है| इससे यह स्पष्ट है की सैनी जाती का इतिहास कितना गोरवपूर्ण रहा है| यह जानकर सुखद अनुभूति होती है की हमारे पूर्वज कितने वैभवशाली वीर अजातशत्रु थे| भारत राष्ट्र संगठित न रहने पर परकीय विदेशी शासको की कुद्रष्टि का शिकार हुआ तथा कुछ शक्तिशाली कबीलों ने भारत को लुटने हेतु कई प्रकार के आक्रमण शुरू कर दिये, यूनान देश के शासक सिकंदर ने प्रथम आक्रमण किया किन्तु पराजित होकर अपने देश यूनान वापस लोट गया|
इसके बाद अरब देशो के कबीलों ने भारत पर आक्रमण कर लूटपाट शुरू कर दी और भारत पर मुस्लिम राज्य स्थापित कर कई वर्षो तक शासन किया| इसके बाद यूरोप देश के अग्रेज बडे चालाक चतुर छलकपट से भारत पर काबिज हो गये| अन्ग्रजो ने भारत के पुराने इतिहास का अध्यन करने यहा के पूर्व शासको एव जातियों के इतिहास की जानकारी हेतु कई इतिहासकारों को भारत की भिन्न प्रांतो मे इतिहास संकलन हेतु नियुक्त किया | एक प्रसिध्द अंग्रेज इतिहासकार ‘परजिटर’ ने भारत की पोरानिक ग्रंथो के आधार पर अपने वृशनी वंश का वृक्ष बिज तैयार किया जिसका भारत के प्रसिध्द इतिहासकार डा.’ए.डी.पुत्स्लकर ‘ एम.ए.,पी एच डी ने भी इस मत का प्रतिपादन किया है| वृशनी (सैनी) जाती के महाराज वृशनी के बाबत अग्रेजी मे लिखा ” Vrishanis youngest son Anamitra have a son and their desiendents were called ” Saiyas “(See Anicient Indian Hostorical Traditio 1922 page 104-105-105)” महाराज वृश्निजी के चोटी पुत्र अनामित्र के महाराज सीनी हुये इसी सिन्नी शब्द का पर्यायवाची शब्द ‘सैनी’ हुआ जिनकी वंशज कहलाते है| (देखे भारत के प्राचीन इतिहास के संकलन मे सं १९२२ मे पेज नं. १०४ सी १०६ तक )|
इस प्रकार भारत के प्राचीन ग्रंथ इतिहास पुरान तथा महाभारत के अनुशासन पर्व मे भी महाराज सैनी के सम्बन्ध मे उल्लेख मिलता है| १. वायु पुराण अध्याय ३७ शुरसैनी महाराजर्थी एक गुनोतम तथा श्लोक १२९ जितेन्द्रिय सत्यवादी प्रजा पालक तत्पर : २. महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय १४९ ‘सदगति स्तक्रती संता सदगति सत्य न्याय परायण’ तथा श्लोक ८८ मे शुर सैनी युद्ध स्न्निवास सुयामन: महाराज शुरसैनी चन्द्रवंशी सम्राट थे इनका राज्य प्राचीनकाल की हस्तिनापुर (वर्मन दिल्ली क्षेत्र पंजाब तथा मथुरा वृदावन उतर प्रदेश) मे फैला हुआ था|इसका वर्णन चाणक्य श्रिषी ने चन्द्रगुप्त मोर्य के शासनकाल मे २५० वर्ष पूर्व था उसका वर्णन कोटील्य अर्थशास्त्र मे किया है की यदुवंश (षैनी) राज्य एव सूर्यवंशी गणराज्य बिखर चुकाई थे| इन राजपरिवारो के कुछ शासको ने बोद्ध धर्म ग्रहण कर लिया कुछ एक ने जीविकोपार्जन के लिय कृषि को अपना लिया|
यूनान के सिकंदर के साथ जो यूनानी इतिहासकार भारत मे आये थे| उन्होने इतिहास संकलन करते समय यदुवंशी तथा सैनी राजाओ मे उच्च कोटी की वीरता और क्षोर्य के साथ साथ उन्हे अच्छ कृषक भी बताया तथा कोटीलय के अर्थक्षास्त्र मे उल्लेख मिला है की क्षत्रियो मे वैक्ष्य वृति (व्यापर ) करने वाले बुद्धिजीवी भी थे| रामायण काल के रजा जनक कहती है की हल चलते samay सीता मिली इस कथा का भाव कुछ भी हो यह घटना इस तथ्य को प्रतिपादित करती है की रामायण काल के रजा भी खैतिबादो करती थे| प्रसिद्ध साहित्यकार कक्शिप्रसाद जायसवाल तथा अंग्रेज इतिहासकार कर्नल ताड़ जिसने राजस्थान की जातियों का इतिहास लिखा है ने क्षुर्सैनी वंश को कई एक ग्न्राज्यो मे बटा हुआ माना है| इन इतिहासकारों के अलावा चिन देश के इतिहासकार ‘मैग्स्थ्निज’ ने काफी वर्षो तक भारत मे रहकर यह कई जातियों कई भ्लिभाती जाच कर सैनी गणराज्यों के बाबत इतिहास मे उल्लेख किया है| इन आर्य शासको का राज्य अर्याव्रता तथा यूरोप के एनी नगरों तक था| महाभारत कई मासा प्रष्ठ १४९-१५० और वत्स पुराण अध्याय ४३ शलोक ४५ से यह पता चलता है कई शुरसैनी प्रदेश मे रहने वाले शुरसैनी लोग मालवे (मध्य प्रदेश) मे जाकर मालव अर्थात माली नाम से पहचाने जाने लगे| कालान्तर मे इन्ही मालवो मे चक्रवर्ती सम्राट वीर विक्रमादित्य हुये जिनके नाम से विक्रम सम्वत चालू हुआ| यह सम्वत छटी शताब्दी से पहले माली सम्वत के नाम से प्रसिद्ध था| मालव का अपन्भ्रस मालव हुआ जो बाद मे माली हो गया| ऐसा मत कई इतिहासकार मानते है|
संकलन करते समय यदुवंशी तथा सैनी राजाओ मे उच्च कोटी की वीरता और क्षोर्य के साथ साथ उन्हे अच्छ कृषक भी बताया तथा कोटीलय के अर्थक्षास्त्र मे उल्लेख मिला है की क्षत्रियो मे वैक्ष्य वृति (व्यापर ) करने वाले बुद्धिजीवी भी थे| रामायण काल के रजा जनक कहती है की हल चलते samay सीता मिली इस कथा का भाव कुछ भी हो यह घटना इस तथ्य को प्रतिपादित करती है की रामायण काल के रजा भी खैतिबादो करती थे| प्रसिद्ध साहित्यकार कक्शिप्रसाद जायसवाल तथा अंग्रेज इतिहासकार कर्नल ताड़ जिसने राजस्थान की जातियों का इतिहास लिखा है ने क्षुर्सैनी वंश को कई एक ग्न्राज्यो मे बटा हुआ माना है| इन इतिहासकारों के अलावा चिन देश के इतिहासकार ‘मैग्स्थ्निज’ ने काफी वर्षो तक भारत मे रहकर यह कई जातियों कई भ्लिभाती जाच कर सैनी गणराज्यों के बाबत इतिहास मे उल्लेख किया है| इन आर्य शासको का राज्य अर्याव्रता तथा यूरोप के एनी नगरों तक था|
महाभारत कई मासा प्रष्ठ १४९-१५० और वत्स पुराण अध्याय ४३ शलोक ४५ से यह पता चलता है कई शुरसैनी प्रदेश मे रहने वाले शुरसैनी लोग मालवे (मध्य प्रदेश) मे जाकर मालव अर्थात माली नाम से पहचाने जाने लगे| कालान्तर मे इन्ही मालवो मे चक्रवर्ती सम्राट वीर विक्रमादित्य हुये जिनके नाम से विक्रम सम्वत चालू हुआ| यह सम्वत छटी शताब्दी से पहले माली सम्वत के नाम से प्रसिद्ध था| मालव का अपन्भ्रस मालव हुआ जो बाद मे माली हो गया| ऐसा मत कई इतिहासकार मानते है| अब भी पैक्षावर मे खटकु सैनी पायी जाते है| तथा स्यालकोट सन १९४७ से डोगर सैनियो से भरा हुआ पड़ा था, सैनी शब्द के विवेचन से सैनी समाज के अपने लोगो को भली भाती ज्ञान चाहिये कई हमारा सैनी समाज सम्वत १२५७ के पर्व महाराज पृथ्वीराज चोहान भारत मे कितने वैभवशाली एव गोरवपूर्ण थे, अरब देश के लुटेरे मोहम्मद गोरी जो सम्राट पृथ्वीराज के भाई जयचंद को प्रलोभन देकर पृथ्वीराज को खत्म कराकर दिल्ली का शासक बन बैठा| इसकी पक्ष्चात भारत पर लगातार मुस्लिम आक्रताओ ने हमले कर बहरत के तत्कालीन शासको को गुलाम बना लिया| इसी समय से क्षत्रिय वीर भारत के किसी भी प्रान्त मे संगठित नही रहे|
क्षत्रिय वीर अलग अलग रियासतो मे मुगलों से विधर्मियों से मिलकर अपनी बहिन बिटिया मुगलों को देने लगा गये| इससे राजस्थान के राजघराने के राजा अग्रणी रहे सिवाय मेवाड़ के म्हाराजाओ के| अन्य क्षत्रिय सरदार जो रियासतो के शासक नही थे किन्तु वीर और चरित्र से आनबान के धनी थे| उन्होने अपनी बहिन बैटिया की अस्मत बचाने के लिय क्षत्रिय वंश ( कुल छोड़कर ) इन क्षत्रियो से अलग हो गये| यह क्षत्रिय राजा राजस्थान मे अपना वर्चस्व कायम रखने हेतु अपने ही भाइयो को जिन्होंने ख्स्त्रिय कुल से अलग होकर दिल्ली के तत्कालीन बादशाह शहबुदीन मोहम्मद गोरी के पास अपने मुखियाओ को बेचकर कहला भेजा की अब हम क्षत्रियो से अलग हो गये| हमने अपना कार्यक्षेत्र कृषि अपना लिया| बादशाह को चाहिये ही क्या था? उसने सोचा कई बहुत ही अच्छा हुआ क्षत्रिय समाज अब संगठित नहीं रहा, क्षत्रियो कई शक्ति छिन्न भिन्न हो गये| अब आराम से दिल्ली का बादशाह बना रहूगा | विक्रम सम्वत १२५७ अथार्त आज से ८०० वर्ष क्षत्रिय समाज राजपूतो से अलग हुये और कृषि कार्य अपना कर माली बने| सैनी क्षत्रिय जो माली शब्द से पहचाने जाने लगे

माली समाज का इतिहास

jotirao-phule-and-savitribai-phule
 माली ” शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के शब्द माला से हुई है , एक पौराणिक कथा के अनुसार माली कि उत्पत्ति भगवान शिव के कान में जमा धुल (कान के मेल ) से हुई थी ,वहीँ एक अन्य कथा के अनुसार एक दिन जब पार्वती जी अपने उद्यान में फूल तोड़ रही थी कि उनके हाथ में एक कांटा चुभने से खून निकल आया , उसी खून से माली कि उत्पत्ति हुई और वहीँ से माली समाज अपने पेशे बागवानी से जुडा |माली समाज में एक वर्ग राजपूतों कि उपश्रेणियों का है |विक्रम सम्वत १२४९ (११९२ इ ) में जब भारत के अंतिम हिंदू सम्राट पृथ्वी राज चौहान के पतन के बाद जब शहाबुद्दीन गौरी और मोहम्मद गौरी शक्तिशाली हो गए और उन्होंने दिल्ली एवं अजमेर पर अपना कब्ज़ा कर लिया तथा अधिकाश राजपूत प्रमुख या तो साम्राज्य की लड़ाई में मारे गए या मुग़ल शासकों द्वारा बंदी बना लिए गए , उन्ही बाकि बचे राजपूतों में कुछ ने मुस्लिम धर्म स्वीकार कर लिया और कुछ राजपूतों ने बागवानी और खेती का पेशा अपनाकर अपने आप को मुगलों से बचाए रखा , और वे राजपूत आगे चलकर माली कहलाये !
माली समाज का इतिहास किसी भी जाती, वंश एव कुल परम्परा के विषय मे जानकारी के लिये पूर्व इतिहास एव पूर्वजो का ज्ञान होना अति आवश्यक है| इसलिए सैनी जाती के गोरव्पूर्ण पुरुषो के विषय मे जानकारी हेतु महाभारत काल के पूर्व इतिहास पर द्रष्टि डालना अति आवश्यक है| आज से ५१०६ वर्ष पूर्व द्वापरकाल के अन्तिम चरण मे य्द्र्वंश मे सचिदानंद घन स्वय परमात्मा भगवान् श्रीकृषण क्षत्रिय कुल मे पैदा हुए और युग पुरुष कहलाये| महाभारत कई युध्दोप्रांत यदुवंश समाप्त प्राय हो गया था| परन्तु इसी कुल मई महाराज सैनी जिन्हे शुरसैनी पुकारते है| जो रजा व्रशनी के पुत्र दैव्मैघ के पुत्र तथा वासुदेव के पिता भगवन श्रीकिशन के दादा थे| इन्ही महाराज व्रशनी के छोटे पुत्र अनामित्र के महाराज सिनी हुये, इस प्रकार महाराज शुरसैनी तथा सिनी दोनों काका ताऊ भाई थे| इन्ही दोनों महापुरुषों के वंशज हम लोग सैनी क्षत्रिय कहलाये|
कालांतर मई वृशनी कुल का उच्चारण सी वृ अक्षर का लोप हो गया और षैणी शब्द उच्चारित होने लगा जो आज भी उतरी भारत के पंजाब एव हरियाणा प्रांतो मे सैनी शब्द के एवज मे अनपढ़ जातीय बंधू षैणी शब्द ही बोलते है, और इसी सिनी महाराज के वंश परम्परा के अपने जातीय बह्धू सिनी शब्द के स्थान पर सैनी शब्द का उच्चारण करने लगे है| जो सर्वथा उचित और उत्तम है| कालांतर मे वृशनि गणराज्य संगठित नहीं रहा और भिन्न भिन्न कबीलों मे विभाजित होकर बिखर गया| किसी भी भू भाग पर इसका एकछत्र राज्य नहीं रहा किन्तु इतिहास इस बात का साक्षी है| की सैनी समाज के पूर्वज क्षत्रिय वंश एव कुल परम्परा मे अग्रणी रहे है|
महाभारत काल के बाद सैनी कुल के अन्तिम चक्रवर्ती सम्राट वीर विक्रेमादित्य हुए है जिन्हे नाम पर आज भी विक्रम सम्वत प्रचलित है| इससे यह स्पष्ट है की सैनी जाती का इतिहास कितना गोरवपूर्ण रहा है| यह जानकर सुखद अनुभूति होती है की हमारे पूर्वज कितने वैभवशाली वीर अजातशत्रु थे| भारत राष्ट्र संगठित न रहने पर परकीय विदेशी शासको की कुद्रष्टि का शिकार हुआ तथा कुछ शक्तिशाली कबीलों ने भारत को लुटने हेतु कई प्रकार के आक्रमण शुरू कर दिये, यूनान देश के शासक सिकंदर ने प्रथम आक्रमण किया किन्तु पराजित होकर अपने देश यूनान वापस लोट गया|
इसके बाद अरब देशो के कबीलों ने भारत पर आक्रमण कर लूटपाट शुरू कर दी और भारत पर मुस्लिम राज्य स्थापित कर कई वर्षो तक शासन किया| इसके बाद यूरोप देश के अग्रेज बडे चालाक चतुर छलकपट से भारत पर काबिज हो गये| अन्ग्रजो ने भारत के पुराने इतिहास का अध्यन करने यहा के पूर्व शासको एव जातियों के इतिहास की जानकारी हेतु कई इतिहासकारों को भारत की भिन्न प्रांतो मे इतिहास संकलन हेतु नियुक्त किया | एक प्रसिध्द अंग्रेज इतिहासकार ‘परजिटर’ ने भारत की पोरानिक ग्रंथो के आधार पर अपने वृशनी वंश का वृक्ष बिज तैयार किया जिसका भारत के प्रसिध्द इतिहासकार डा.’ए.डी.पुत्स्लकर ‘ एम.ए.,पी एच डी ने भी इस मत का प्रतिपादन किया है| वृशनी (सैनी) जाती के महाराज वृशनी के बाबत अग्रेजी मे लिखा ” Vrishanis youngest son Anamitra have a son and their desiendents were called ” Saiyas “(See Anicient Indian Hostorical Traditio 1922 page 104-105-105)” महाराज वृश्निजी के चोटी पुत्र अनामित्र के महाराज सीनी हुये इसी सिन्नी शब्द का पर्यायवाची शब्द ‘सैनी’ हुआ जिनकी वंशज कहलाते है| (देखे भारत के प्राचीन इतिहास के संकलन मे सं १९२२ मे पेज नं. १०४ सी १०६ तक )|
इस प्रकार भारत के प्राचीन ग्रंथ इतिहास पुरान तथा महाभारत के अनुशासन पर्व मे भी महाराज सैनी के सम्बन्ध मे उल्लेख मिलता है| १. वायु पुराण अध्याय ३७ शुरसैनी महाराजर्थी एक गुनोतम तथा श्लोक १२९ जितेन्द्रिय सत्यवादी प्रजा पालक तत्पर : २. महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय १४९ ‘सदगति स्तक्रती संता सदगति सत्य न्याय परायण’ तथा श्लोक ८८ मे शुर सैनी युद्ध स्न्निवास सुयामन: महाराज शुरसैनी चन्द्रवंशी सम्राट थे इनका राज्य प्राचीनकाल की हस्तिनापुर (वर्मन दिल्ली क्षेत्र पंजाब तथा मथुरा वृदावन उतर प्रदेश) मे फैला हुआ था|इसका वर्णन चाणक्य श्रिषी ने चन्द्रगुप्त मोर्य के शासनकाल मे २५० वर्ष पूर्व था उसका वर्णन कोटील्य अर्थशास्त्र मे किया है की यदुवंश (षैनी) राज्य एव सूर्यवंशी गणराज्य बिखर चुकाई थे| इन राजपरिवारो के कुछ शासको ने बोद्ध धर्म ग्रहण कर लिया कुछ एक ने जीविकोपार्जन के लिय कृषि को अपना लिया|
यूनान के सिकंदर के साथ जो यूनानी इतिहासकार भारत मे आये थे| उन्होने इतिहास संकलन करते समय यदुवंशी तथा सैनी राजाओ मे उच्च कोटी की वीरता और क्षोर्य के साथ साथ उन्हे अच्छ कृषक भी बताया तथा कोटीलय के अर्थक्षास्त्र मे उल्लेख मिला है की क्षत्रियो मे वैक्ष्य वृति (व्यापर ) करने वाले बुद्धिजीवी भी थे| रामायण काल के रजा जनक कहती है की हल चलते samay सीता मिली इस कथा का भाव कुछ भी हो यह घटना इस तथ्य को प्रतिपादित करती है की रामायण काल के रजा भी खैतिबादो करती थे| प्रसिद्ध साहित्यकार कक्शिप्रसाद जायसवाल तथा अंग्रेज इतिहासकार कर्नल ताड़ जिसने राजस्थान की जातियों का इतिहास लिखा है ने क्षुर्सैनी वंश को कई एक ग्न्राज्यो मे बटा हुआ माना है| इन इतिहासकारों के अलावा चिन देश के इतिहासकार ‘मैग्स्थ्निज’ ने काफी वर्षो तक भारत मे रहकर यह कई जातियों कई भ्लिभाती जाच कर सैनी गणराज्यों के बाबत इतिहास मे उल्लेख किया है| इन आर्य शासको का राज्य अर्याव्रता तथा यूरोप के एनी नगरों तक था| महाभारत कई मासा प्रष्ठ १४९-१५० और वत्स पुराण अध्याय ४३ शलोक ४५ से यह पता चलता है कई शुरसैनी प्रदेश मे रहने वाले शुरसैनी लोग मालवे (मध्य प्रदेश) मे जाकर मालव अर्थात माली नाम से पहचाने जाने लगे| कालान्तर मे इन्ही मालवो मे चक्रवर्ती सम्राट वीर विक्रमादित्य हुये जिनके नाम से विक्रम सम्वत चालू हुआ| यह सम्वत छटी शताब्दी से पहले माली सम्वत के नाम से प्रसिद्ध था| मालव का अपन्भ्रस मालव हुआ जो बाद मे माली हो गया| ऐसा मत कई इतिहासकार मानते है|
संकलन करते समय यदुवंशी तथा सैनी राजाओ मे उच्च कोटी की वीरता और क्षोर्य के साथ साथ उन्हे अच्छ कृषक भी बताया तथा कोटीलय के अर्थक्षास्त्र मे उल्लेख मिला है की क्षत्रियो मे वैक्ष्य वृति (व्यापर ) करने वाले बुद्धिजीवी भी थे| रामायण काल के रजा जनक कहती है की हल चलते samay सीता मिली इस कथा का भाव कुछ भी हो यह घटना इस तथ्य को प्रतिपादित करती है की रामायण काल के रजा भी खैतिबादो करती थे| प्रसिद्ध साहित्यकार कक्शिप्रसाद जायसवाल तथा अंग्रेज इतिहासकार कर्नल ताड़ जिसने राजस्थान की जातियों का इतिहास लिखा है ने क्षुर्सैनी वंश को कई एक ग्न्राज्यो मे बटा हुआ माना है| इन इतिहासकारों के अलावा चिन देश के इतिहासकार ‘मैग्स्थ्निज’ ने काफी वर्षो तक भारत मे रहकर यह कई जातियों कई भ्लिभाती जाच कर सैनी गणराज्यों के बाबत इतिहास मे उल्लेख किया है| इन आर्य शासको का राज्य अर्याव्रता तथा यूरोप के एनी नगरों तक था|
महाभारत कई मासा प्रष्ठ १४९-१५० और वत्स पुराण अध्याय ४३ शलोक ४५ से यह पता चलता है कई शुरसैनी प्रदेश मे रहने वाले शुरसैनी लोग मालवे (मध्य प्रदेश) मे जाकर मालव अर्थात माली नाम से पहचाने जाने लगे| कालान्तर मे इन्ही मालवो मे चक्रवर्ती सम्राट वीर विक्रमादित्य हुये जिनके नाम से विक्रम सम्वत चालू हुआ| यह सम्वत छटी शताब्दी से पहले माली सम्वत के नाम से प्रसिद्ध था| मालव का अपन्भ्रस मालव हुआ जो बाद मे माली हो गया| ऐसा मत कई इतिहासकार मानते है| अब भी पैक्षावर मे खटकु सैनी पायी जाते है| तथा स्यालकोट सन १९४७ से डोगर सैनियो से भरा हुआ पड़ा था, सैनी शब्द के विवेचन से सैनी समाज के अपने लोगो को भली भाती ज्ञान चाहिये कई हमारा सैनी समाज सम्वत १२५७ के पर्व महाराज पृथ्वीराज चोहान भारत मे कितने वैभवशाली एव गोरवपूर्ण थे, अरब देश के लुटेरे मोहम्मद गोरी जो सम्राट पृथ्वीराज के भाई जयचंद को प्रलोभन देकर पृथ्वीराज को खत्म कराकर दिल्ली का शासक बन बैठा| इसकी पक्ष्चात भारत पर लगातार मुस्लिम आक्रताओ ने हमले कर बहरत के तत्कालीन शासको को गुलाम बना लिया| इसी समय से क्षत्रिय वीर भारत के किसी भी प्रान्त मे संगठित नही रहे|
क्षत्रिय वीर अलग अलग रियासतो मे मुगलों से विधर्मियों से मिलकर अपनी बहिन बिटिया मुगलों को देने लगा गये| इससे राजस्थान के राजघराने के राजा अग्रणी रहे सिवाय मेवाड़ के म्हाराजाओ के| अन्य क्षत्रिय सरदार जो रियासतो के शासक नही थे किन्तु वीर और चरित्र से आनबान के धनी थे| उन्होने अपनी बहिन बैटिया की अस्मत बचाने के लिय क्षत्रिय वंश ( कुल छोड़कर ) इन क्षत्रियो से अलग हो गये| यह क्षत्रिय राजा राजस्थान मे अपना वर्चस्व कायम रखने हेतु अपने ही भाइयो को जिन्होंने ख्स्त्रिय कुल से अलग होकर दिल्ली के तत्कालीन बादशाह शहबुदीन मोहम्मद गोरी के पास अपने मुखियाओ को बेचकर कहला भेजा की अब हम क्षत्रियो से अलग हो गये| हमने अपना कार्यक्षेत्र कृषि अपना लिया| बादशाह को चाहिये ही क्या था? उसने सोचा कई बहुत ही अच्छा हुआ क्षत्रिय समाज अब संगठित नहीं रहा, क्षत्रियो कई शक्ति छिन्न भिन्न हो गये| अब आराम से दिल्ली का बादशाह बना रहूगा | विक्रम सम्वत १२५७ अथार्त आज से ८०० वर्ष क्षत्रिय समाज राजपूतो से अलग हुये और कृषि कार्य अपना कर माली बने| सैनी क्षत्रिय जो माली शब्द से पहचाने जाने लगे

माली समाज का इतिहास

jotirao-phule-and-savitribai-phule
 माली ” शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के शब्द माला से हुई है , एक पौराणिक कथा के अनुसार माली कि उत्पत्ति भगवान शिव के कान में जमा धुल (कान के मेल ) से हुई थी ,वहीँ एक अन्य कथा के अनुसार एक दिन जब पार्वती जी अपने उद्यान में फूल तोड़ रही थी कि उनके हाथ में एक कांटा चुभने से खून निकल आया , उसी खून से माली कि उत्पत्ति हुई और वहीँ से माली समाज अपने पेशे बागवानी से जुडा |माली समाज में एक वर्ग राजपूतों कि उपश्रेणियों का है |विक्रम सम्वत १२४९ (११९२ इ ) में जब भारत के अंतिम हिंदू सम्राट पृथ्वी राज चौहान के पतन के बाद जब शहाबुद्दीन गौरी और मोहम्मद गौरी शक्तिशाली हो गए और उन्होंने दिल्ली एवं अजमेर पर अपना कब्ज़ा कर लिया तथा अधिकाश राजपूत प्रमुख या तो साम्राज्य की लड़ाई में मारे गए या मुग़ल शासकों द्वारा बंदी बना लिए गए , उन्ही बाकि बचे राजपूतों में कुछ ने मुस्लिम धर्म स्वीकार कर लिया और कुछ राजपूतों ने बागवानी और खेती का पेशा अपनाकर अपने आप को मुगलों से बचाए रखा , और वे राजपूत आगे चलकर माली कहलाये !
माली समाज का इतिहास किसी भी जाती, वंश एव कुल परम्परा के विषय मे जानकारी के लिये पूर्व इतिहास एव पूर्वजो का ज्ञान होना अति आवश्यक है| इसलिए सैनी जाती के गोरव्पूर्ण पुरुषो के विषय मे जानकारी हेतु महाभारत काल के पूर्व इतिहास पर द्रष्टि डालना अति आवश्यक है| आज से ५१०६ वर्ष पूर्व द्वापरकाल के अन्तिम चरण मे य्द्र्वंश मे सचिदानंद घन स्वय परमात्मा भगवान् श्रीकृषण क्षत्रिय कुल मे पैदा हुए और युग पुरुष कहलाये| महाभारत कई युध्दोप्रांत यदुवंश समाप्त प्राय हो गया था| परन्तु इसी कुल मई महाराज सैनी जिन्हे शुरसैनी पुकारते है| जो रजा व्रशनी के पुत्र दैव्मैघ के पुत्र तथा वासुदेव के पिता भगवन श्रीकिशन के दादा थे| इन्ही महाराज व्रशनी के छोटे पुत्र अनामित्र के महाराज सिनी हुये, इस प्रकार महाराज शुरसैनी तथा सिनी दोनों काका ताऊ भाई थे| इन्ही दोनों महापुरुषों के वंशज हम लोग सैनी क्षत्रिय कहलाये|
कालांतर मई वृशनी कुल का उच्चारण सी वृ अक्षर का लोप हो गया और षैणी शब्द उच्चारित होने लगा जो आज भी उतरी भारत के पंजाब एव हरियाणा प्रांतो मे सैनी शब्द के एवज मे अनपढ़ जातीय बंधू षैणी शब्द ही बोलते है, और इसी सिनी महाराज के वंश परम्परा के अपने जातीय बह्धू सिनी शब्द के स्थान पर सैनी शब्द का उच्चारण करने लगे है| जो सर्वथा उचित और उत्तम है| कालांतर मे वृशनि गणराज्य संगठित नहीं रहा और भिन्न भिन्न कबीलों मे विभाजित होकर बिखर गया| किसी भी भू भाग पर इसका एकछत्र राज्य नहीं रहा किन्तु इतिहास इस बात का साक्षी है| की सैनी समाज के पूर्वज क्षत्रिय वंश एव कुल परम्परा मे अग्रणी रहे है|
महाभारत काल के बाद सैनी कुल के अन्तिम चक्रवर्ती सम्राट वीर विक्रेमादित्य हुए है जिन्हे नाम पर आज भी विक्रम सम्वत प्रचलित है| इससे यह स्पष्ट है की सैनी जाती का इतिहास कितना गोरवपूर्ण रहा है| यह जानकर सुखद अनुभूति होती है की हमारे पूर्वज कितने वैभवशाली वीर अजातशत्रु थे| भारत राष्ट्र संगठित न रहने पर परकीय विदेशी शासको की कुद्रष्टि का शिकार हुआ तथा कुछ शक्तिशाली कबीलों ने भारत को लुटने हेतु कई प्रकार के आक्रमण शुरू कर दिये, यूनान देश के शासक सिकंदर ने प्रथम आक्रमण किया किन्तु पराजित होकर अपने देश यूनान वापस लोट गया|
इसके बाद अरब देशो के कबीलों ने भारत पर आक्रमण कर लूटपाट शुरू कर दी और भारत पर मुस्लिम राज्य स्थापित कर कई वर्षो तक शासन किया| इसके बाद यूरोप देश के अग्रेज बडे चालाक चतुर छलकपट से भारत पर काबिज हो गये| अन्ग्रजो ने भारत के पुराने इतिहास का अध्यन करने यहा के पूर्व शासको एव जातियों के इतिहास की जानकारी हेतु कई इतिहासकारों को भारत की भिन्न प्रांतो मे इतिहास संकलन हेतु नियुक्त किया | एक प्रसिध्द अंग्रेज इतिहासकार ‘परजिटर’ ने भारत की पोरानिक ग्रंथो के आधार पर अपने वृशनी वंश का वृक्ष बिज तैयार किया जिसका भारत के प्रसिध्द इतिहासकार डा.’ए.डी.पुत्स्लकर ‘ एम.ए.,पी एच डी ने भी इस मत का प्रतिपादन किया है| वृशनी (सैनी) जाती के महाराज वृशनी के बाबत अग्रेजी मे लिखा ” Vrishanis youngest son Anamitra have a son and their desiendents were called ” Saiyas “(See Anicient Indian Hostorical Traditio 1922 page 104-105-105)” महाराज वृश्निजी के चोटी पुत्र अनामित्र के महाराज सीनी हुये इसी सिन्नी शब्द का पर्यायवाची शब्द ‘सैनी’ हुआ जिनकी वंशज कहलाते है| (देखे भारत के प्राचीन इतिहास के संकलन मे सं १९२२ मे पेज नं. १०४ सी १०६ तक )|
इस प्रकार भारत के प्राचीन ग्रंथ इतिहास पुरान तथा महाभारत के अनुशासन पर्व मे भी महाराज सैनी के सम्बन्ध मे उल्लेख मिलता है| १. वायु पुराण अध्याय ३७ शुरसैनी महाराजर्थी एक गुनोतम तथा श्लोक १२९ जितेन्द्रिय सत्यवादी प्रजा पालक तत्पर : २. महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय १४९ ‘सदगति स्तक्रती संता सदगति सत्य न्याय परायण’ तथा श्लोक ८८ मे शुर सैनी युद्ध स्न्निवास सुयामन: महाराज शुरसैनी चन्द्रवंशी सम्राट थे इनका राज्य प्राचीनकाल की हस्तिनापुर (वर्मन दिल्ली क्षेत्र पंजाब तथा मथुरा वृदावन उतर प्रदेश) मे फैला हुआ था|इसका वर्णन चाणक्य श्रिषी ने चन्द्रगुप्त मोर्य के शासनकाल मे २५० वर्ष पूर्व था उसका वर्णन कोटील्य अर्थशास्त्र मे किया है की यदुवंश (षैनी) राज्य एव सूर्यवंशी गणराज्य बिखर चुकाई थे| इन राजपरिवारो के कुछ शासको ने बोद्ध धर्म ग्रहण कर लिया कुछ एक ने जीविकोपार्जन के लिय कृषि को अपना लिया|
यूनान के सिकंदर के साथ जो यूनानी इतिहासकार भारत मे आये थे| उन्होने इतिहास संकलन करते समय यदुवंशी तथा सैनी राजाओ मे उच्च कोटी की वीरता और क्षोर्य के साथ साथ उन्हे अच्छ कृषक भी बताया तथा कोटीलय के अर्थक्षास्त्र मे उल्लेख मिला है की क्षत्रियो मे वैक्ष्य वृति (व्यापर ) करने वाले बुद्धिजीवी भी थे| रामायण काल के रजा जनक कहती है की हल चलते samay सीता मिली इस कथा का भाव कुछ भी हो यह घटना इस तथ्य को प्रतिपादित करती है की रामायण काल के रजा भी खैतिबादो करती थे| प्रसिद्ध साहित्यकार कक्शिप्रसाद जायसवाल तथा अंग्रेज इतिहासकार कर्नल ताड़ जिसने राजस्थान की जातियों का इतिहास लिखा है ने क्षुर्सैनी वंश को कई एक ग्न्राज्यो मे बटा हुआ माना है| इन इतिहासकारों के अलावा चिन देश के इतिहासकार ‘मैग्स्थ्निज’ ने काफी वर्षो तक भारत मे रहकर यह कई जातियों कई भ्लिभाती जाच कर सैनी गणराज्यों के बाबत इतिहास मे उल्लेख किया है| इन आर्य शासको का राज्य अर्याव्रता तथा यूरोप के एनी नगरों तक था| महाभारत कई मासा प्रष्ठ १४९-१५० और वत्स पुराण अध्याय ४३ शलोक ४५ से यह पता चलता है कई शुरसैनी प्रदेश मे रहने वाले शुरसैनी लोग मालवे (मध्य प्रदेश) मे जाकर मालव अर्थात माली नाम से पहचाने जाने लगे| कालान्तर मे इन्ही मालवो मे चक्रवर्ती सम्राट वीर विक्रमादित्य हुये जिनके नाम से विक्रम सम्वत चालू हुआ| यह सम्वत छटी शताब्दी से पहले माली सम्वत के नाम से प्रसिद्ध था| मालव का अपन्भ्रस मालव हुआ जो बाद मे माली हो गया| ऐसा मत कई इतिहासकार मानते है|
संकलन करते समय यदुवंशी तथा सैनी राजाओ मे उच्च कोटी की वीरता और क्षोर्य के साथ साथ उन्हे अच्छ कृषक भी बताया तथा कोटीलय के अर्थक्षास्त्र मे उल्लेख मिला है की क्षत्रियो मे वैक्ष्य वृति (व्यापर ) करने वाले बुद्धिजीवी भी थे| रामायण काल के रजा जनक कहती है की हल चलते samay सीता मिली इस कथा का भाव कुछ भी हो यह घटना इस तथ्य को प्रतिपादित करती है की रामायण काल के रजा भी खैतिबादो करती थे| प्रसिद्ध साहित्यकार कक्शिप्रसाद जायसवाल तथा अंग्रेज इतिहासकार कर्नल ताड़ जिसने राजस्थान की जातियों का इतिहास लिखा है ने क्षुर्सैनी वंश को कई एक ग्न्राज्यो मे बटा हुआ माना है| इन इतिहासकारों के अलावा चिन देश के इतिहासकार ‘मैग्स्थ्निज’ ने काफी वर्षो तक भारत मे रहकर यह कई जातियों कई भ्लिभाती जाच कर सैनी गणराज्यों के बाबत इतिहास मे उल्लेख किया है| इन आर्य शासको का राज्य अर्याव्रता तथा यूरोप के एनी नगरों तक था|
महाभारत कई मासा प्रष्ठ १४९-१५० और वत्स पुराण अध्याय ४३ शलोक ४५ से यह पता चलता है कई शुरसैनी प्रदेश मे रहने वाले शुरसैनी लोग मालवे (मध्य प्रदेश) मे जाकर मालव अर्थात माली नाम से पहचाने जाने लगे| कालान्तर मे इन्ही मालवो मे चक्रवर्ती सम्राट वीर विक्रमादित्य हुये जिनके नाम से विक्रम सम्वत चालू हुआ| यह सम्वत छटी शताब्दी से पहले माली सम्वत के नाम से प्रसिद्ध था| मालव का अपन्भ्रस मालव हुआ जो बाद मे माली हो गया| ऐसा मत कई इतिहासकार मानते है| अब भी पैक्षावर मे खटकु सैनी पायी जाते है| तथा स्यालकोट सन १९४७ से डोगर सैनियो से भरा हुआ पड़ा था, सैनी शब्द के विवेचन से सैनी समाज के अपने लोगो को भली भाती ज्ञान चाहिये कई हमारा सैनी समाज सम्वत १२५७ के पर्व महाराज पृथ्वीराज चोहान भारत मे कितने वैभवशाली एव गोरवपूर्ण थे, अरब देश के लुटेरे मोहम्मद गोरी जो सम्राट पृथ्वीराज के भाई जयचंद को प्रलोभन देकर पृथ्वीराज को खत्म कराकर दिल्ली का शासक बन बैठा| इसकी पक्ष्चात भारत पर लगातार मुस्लिम आक्रताओ ने हमले कर बहरत के तत्कालीन शासको को गुलाम बना लिया| इसी समय से क्षत्रिय वीर भारत के किसी भी प्रान्त मे संगठित नही रहे|
क्षत्रिय वीर अलग अलग रियासतो मे मुगलों से विधर्मियों से मिलकर अपनी बहिन बिटिया मुगलों को देने लगा गये| इससे राजस्थान के राजघराने के राजा अग्रणी रहे सिवाय मेवाड़ के म्हाराजाओ के| अन्य क्षत्रिय सरदार जो रियासतो के शासक नही थे किन्तु वीर और चरित्र से आनबान के धनी थे| उन्होने अपनी बहिन बैटिया की अस्मत बचाने के लिय क्षत्रिय वंश ( कुल छोड़कर ) इन क्षत्रियो से अलग हो गये| यह क्षत्रिय राजा राजस्थान मे अपना वर्चस्व कायम रखने हेतु अपने ही भाइयो को जिन्होंने ख्स्त्रिय कुल से अलग होकर दिल्ली के तत्कालीन बादशाह शहबुदीन मोहम्मद गोरी के पास अपने मुखियाओ को बेचकर कहला भेजा की अब हम क्षत्रियो से अलग हो गये| हमने अपना कार्यक्षेत्र कृषि अपना लिया| बादशाह को चाहिये ही क्या था? उसने सोचा कई बहुत ही अच्छा हुआ क्षत्रिय समाज अब संगठित नहीं रहा, क्षत्रियो कई शक्ति छिन्न भिन्न हो गये| अब आराम से दिल्ली का बादशाह बना रहूगा | विक्रम सम्वत १२५७ अथार्त आज से ८०० वर्ष क्षत्रिय समाज राजपूतो से अलग हुये और कृषि कार्य अपना कर माली बने| सैनी क्षत्रिय जो माली शब्द से पहचाने जाने लगे

माली समाज का इतिहास

jotirao-phule-and-savitribai-phule
 माली ” शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के शब्द माला से हुई है , एक पौराणिक कथा के अनुसार माली कि उत्पत्ति भगवान शिव के कान में जमा धुल (कान के मेल ) से हुई थी ,वहीँ एक अन्य कथा के अनुसार एक दिन जब पार्वती जी अपने उद्यान में फूल तोड़ रही थी कि उनके हाथ में एक कांटा चुभने से खून निकल आया , उसी खून से माली कि उत्पत्ति हुई और वहीँ से माली समाज अपने पेशे बागवानी से जुडा |माली समाज में एक वर्ग राजपूतों कि उपश्रेणियों का है |विक्रम सम्वत १२४९ (११९२ इ ) में जब भारत के अंतिम हिंदू सम्राट पृथ्वी राज चौहान के पतन के बाद जब शहाबुद्दीन गौरी और मोहम्मद गौरी शक्तिशाली हो गए और उन्होंने दिल्ली एवं अजमेर पर अपना कब्ज़ा कर लिया तथा अधिकाश राजपूत प्रमुख या तो साम्राज्य की लड़ाई में मारे गए या मुग़ल शासकों द्वारा बंदी बना लिए गए , उन्ही बाकि बचे राजपूतों में कुछ ने मुस्लिम धर्म स्वीकार कर लिया और कुछ राजपूतों ने बागवानी और खेती का पेशा अपनाकर अपने आप को मुगलों से बचाए रखा , और वे राजपूत आगे चलकर माली कहलाये !
माली समाज का इतिहास किसी भी जाती, वंश एव कुल परम्परा के विषय मे जानकारी के लिये पूर्व इतिहास एव पूर्वजो का ज्ञान होना अति आवश्यक है| इसलिए सैनी जाती के गोरव्पूर्ण पुरुषो के विषय मे जानकारी हेतु महाभारत काल के पूर्व इतिहास पर द्रष्टि डालना अति आवश्यक है| आज से ५१०६ वर्ष पूर्व द्वापरकाल के अन्तिम चरण मे य्द्र्वंश मे सचिदानंद घन स्वय परमात्मा भगवान् श्रीकृषण क्षत्रिय कुल मे पैदा हुए और युग पुरुष कहलाये| महाभारत कई युध्दोप्रांत यदुवंश समाप्त प्राय हो गया था| परन्तु इसी कुल मई महाराज सैनी जिन्हे शुरसैनी पुकारते है| जो रजा व्रशनी के पुत्र दैव्मैघ के पुत्र तथा वासुदेव के पिता भगवन श्रीकिशन के दादा थे| इन्ही महाराज व्रशनी के छोटे पुत्र अनामित्र के महाराज सिनी हुये, इस प्रकार महाराज शुरसैनी तथा सिनी दोनों काका ताऊ भाई थे| इन्ही दोनों महापुरुषों के वंशज हम लोग सैनी क्षत्रिय कहलाये|
कालांतर मई वृशनी कुल का उच्चारण सी वृ अक्षर का लोप हो गया और षैणी शब्द उच्चारित होने लगा जो आज भी उतरी भारत के पंजाब एव हरियाणा प्रांतो मे सैनी शब्द के एवज मे अनपढ़ जातीय बंधू षैणी शब्द ही बोलते है, और इसी सिनी महाराज के वंश परम्परा के अपने जातीय बह्धू सिनी शब्द के स्थान पर सैनी शब्द का उच्चारण करने लगे है| जो सर्वथा उचित और उत्तम है| कालांतर मे वृशनि गणराज्य संगठित नहीं रहा और भिन्न भिन्न कबीलों मे विभाजित होकर बिखर गया| किसी भी भू भाग पर इसका एकछत्र राज्य नहीं रहा किन्तु इतिहास इस बात का साक्षी है| की सैनी समाज के पूर्वज क्षत्रिय वंश एव कुल परम्परा मे अग्रणी रहे है|
महाभारत काल के बाद सैनी कुल के अन्तिम चक्रवर्ती सम्राट वीर विक्रेमादित्य हुए है जिन्हे नाम पर आज भी विक्रम सम्वत प्रचलित है| इससे यह स्पष्ट है की सैनी जाती का इतिहास कितना गोरवपूर्ण रहा है| यह जानकर सुखद अनुभूति होती है की हमारे पूर्वज कितने वैभवशाली वीर अजातशत्रु थे| भारत राष्ट्र संगठित न रहने पर परकीय विदेशी शासको की कुद्रष्टि का शिकार हुआ तथा कुछ शक्तिशाली कबीलों ने भारत को लुटने हेतु कई प्रकार के आक्रमण शुरू कर दिये, यूनान देश के शासक सिकंदर ने प्रथम आक्रमण किया किन्तु पराजित होकर अपने देश यूनान वापस लोट गया|
इसके बाद अरब देशो के कबीलों ने भारत पर आक्रमण कर लूटपाट शुरू कर दी और भारत पर मुस्लिम राज्य स्थापित कर कई वर्षो तक शासन किया| इसके बाद यूरोप देश के अग्रेज बडे चालाक चतुर छलकपट से भारत पर काबिज हो गये| अन्ग्रजो ने भारत के पुराने इतिहास का अध्यन करने यहा के पूर्व शासको एव जातियों के इतिहास की जानकारी हेतु कई इतिहासकारों को भारत की भिन्न प्रांतो मे इतिहास संकलन हेतु नियुक्त किया | एक प्रसिध्द अंग्रेज इतिहासकार ‘परजिटर’ ने भारत की पोरानिक ग्रंथो के आधार पर अपने वृशनी वंश का वृक्ष बिज तैयार किया जिसका भारत के प्रसिध्द इतिहासकार डा.’ए.डी.पुत्स्लकर ‘ एम.ए.,पी एच डी ने भी इस मत का प्रतिपादन किया है| वृशनी (सैनी) जाती के महाराज वृशनी के बाबत अग्रेजी मे लिखा ” Vrishanis youngest son Anamitra have a son and their desiendents were called ” Saiyas “(See Anicient Indian Hostorical Traditio 1922 page 104-105-105)” महाराज वृश्निजी के चोटी पुत्र अनामित्र के महाराज सीनी हुये इसी सिन्नी शब्द का पर्यायवाची शब्द ‘सैनी’ हुआ जिनकी वंशज कहलाते है| (देखे भारत के प्राचीन इतिहास के संकलन मे सं १९२२ मे पेज नं. १०४ सी १०६ तक )|
इस प्रकार भारत के प्राचीन ग्रंथ इतिहास पुरान तथा महाभारत के अनुशासन पर्व मे भी महाराज सैनी के सम्बन्ध मे उल्लेख मिलता है| १. वायु पुराण अध्याय ३७ शुरसैनी महाराजर्थी एक गुनोतम तथा श्लोक १२९ जितेन्द्रिय सत्यवादी प्रजा पालक तत्पर : २. महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय १४९ ‘सदगति स्तक्रती संता सदगति सत्य न्याय परायण’ तथा श्लोक ८८ मे शुर सैनी युद्ध स्न्निवास सुयामन: महाराज शुरसैनी चन्द्रवंशी सम्राट थे इनका राज्य प्राचीनकाल की हस्तिनापुर (वर्मन दिल्ली क्षेत्र पंजाब तथा मथुरा वृदावन उतर प्रदेश) मे फैला हुआ था|इसका वर्णन चाणक्य श्रिषी ने चन्द्रगुप्त मोर्य के शासनकाल मे २५० वर्ष पूर्व था उसका वर्णन कोटील्य अर्थशास्त्र मे किया है की यदुवंश (षैनी) राज्य एव सूर्यवंशी गणराज्य बिखर चुकाई थे| इन राजपरिवारो के कुछ शासको ने बोद्ध धर्म ग्रहण कर लिया कुछ एक ने जीविकोपार्जन के लिय कृषि को अपना लिया|
यूनान के सिकंदर के साथ जो यूनानी इतिहासकार भारत मे आये थे| उन्होने इतिहास संकलन करते समय यदुवंशी तथा सैनी राजाओ मे उच्च कोटी की वीरता और क्षोर्य के साथ साथ उन्हे अच्छ कृषक भी बताया तथा कोटीलय के अर्थक्षास्त्र मे उल्लेख मिला है की क्षत्रियो मे वैक्ष्य वृति (व्यापर ) करने वाले बुद्धिजीवी भी थे| रामायण काल के रजा जनक कहती है की हल चलते samay सीता मिली इस कथा का भाव कुछ भी हो यह घटना इस तथ्य को प्रतिपादित करती है की रामायण काल के रजा भी खैतिबादो करती थे| प्रसिद्ध साहित्यकार कक्शिप्रसाद जायसवाल तथा अंग्रेज इतिहासकार कर्नल ताड़ जिसने राजस्थान की जातियों का इतिहास लिखा है ने क्षुर्सैनी वंश को कई एक ग्न्राज्यो मे बटा हुआ माना है| इन इतिहासकारों के अलावा चिन देश के इतिहासकार ‘मैग्स्थ्निज’ ने काफी वर्षो तक भारत मे रहकर यह कई जातियों कई भ्लिभाती जाच कर सैनी गणराज्यों के बाबत इतिहास मे उल्लेख किया है| इन आर्य शासको का राज्य अर्याव्रता तथा यूरोप के एनी नगरों तक था| महाभारत कई मासा प्रष्ठ १४९-१५० और वत्स पुराण अध्याय ४३ शलोक ४५ से यह पता चलता है कई शुरसैनी प्रदेश मे रहने वाले शुरसैनी लोग मालवे (मध्य प्रदेश) मे जाकर मालव अर्थात माली नाम से पहचाने जाने लगे| कालान्तर मे इन्ही मालवो मे चक्रवर्ती सम्राट वीर विक्रमादित्य हुये जिनके नाम से विक्रम सम्वत चालू हुआ| यह सम्वत छटी शताब्दी से पहले माली सम्वत के नाम से प्रसिद्ध था| मालव का अपन्भ्रस मालव हुआ जो बाद मे माली हो गया| ऐसा मत कई इतिहासकार मानते है|
संकलन करते समय यदुवंशी तथा सैनी राजाओ मे उच्च कोटी की वीरता और क्षोर्य के साथ साथ उन्हे अच्छ कृषक भी बताया तथा कोटीलय के अर्थक्षास्त्र मे उल्लेख मिला है की क्षत्रियो मे वैक्ष्य वृति (व्यापर ) करने वाले बुद्धिजीवी भी थे| रामायण काल के रजा जनक कहती है की हल चलते samay सीता मिली इस कथा का भाव कुछ भी हो यह घटना इस तथ्य को प्रतिपादित करती है की रामायण काल के रजा भी खैतिबादो करती थे| प्रसिद्ध साहित्यकार कक्शिप्रसाद जायसवाल तथा अंग्रेज इतिहासकार कर्नल ताड़ जिसने राजस्थान की जातियों का इतिहास लिखा है ने क्षुर्सैनी वंश को कई एक ग्न्राज्यो मे बटा हुआ माना है| इन इतिहासकारों के अलावा चिन देश के इतिहासकार ‘मैग्स्थ्निज’ ने काफी वर्षो तक भारत मे रहकर यह कई जातियों कई भ्लिभाती जाच कर सैनी गणराज्यों के बाबत इतिहास मे उल्लेख किया है| इन आर्य शासको का राज्य अर्याव्रता तथा यूरोप के एनी नगरों तक था|
महाभारत कई मासा प्रष्ठ १४९-१५० और वत्स पुराण अध्याय ४३ शलोक ४५ से यह पता चलता है कई शुरसैनी प्रदेश मे रहने वाले शुरसैनी लोग मालवे (मध्य प्रदेश) मे जाकर मालव अर्थात माली नाम से पहचाने जाने लगे| कालान्तर मे इन्ही मालवो मे चक्रवर्ती सम्राट वीर विक्रमादित्य हुये जिनके नाम से विक्रम सम्वत चालू हुआ| यह सम्वत छटी शताब्दी से पहले माली सम्वत के नाम से प्रसिद्ध था| मालव का अपन्भ्रस मालव हुआ जो बाद मे माली हो गया| ऐसा मत कई इतिहासकार मानते है| अब भी पैक्षावर मे खटकु सैनी पायी जाते है| तथा स्यालकोट सन १९४७ से डोगर सैनियो से भरा हुआ पड़ा था, सैनी शब्द के विवेचन से सैनी समाज के अपने लोगो को भली भाती ज्ञान चाहिये कई हमारा सैनी समाज सम्वत १२५७ के पर्व महाराज पृथ्वीराज चोहान भारत मे कितने वैभवशाली एव गोरवपूर्ण थे, अरब देश के लुटेरे मोहम्मद गोरी जो सम्राट पृथ्वीराज के भाई जयचंद को प्रलोभन देकर पृथ्वीराज को खत्म कराकर दिल्ली का शासक बन बैठा| इसकी पक्ष्चात भारत पर लगातार मुस्लिम आक्रताओ ने हमले कर बहरत के तत्कालीन शासको को गुलाम बना लिया| इसी समय से क्षत्रिय वीर भारत के किसी भी प्रान्त मे संगठित नही रहे|
क्षत्रिय वीर अलग अलग रियासतो मे मुगलों से विधर्मियों से मिलकर अपनी बहिन बिटिया मुगलों को देने लगा गये| इससे राजस्थान के राजघराने के राजा अग्रणी रहे सिवाय मेवाड़ के म्हाराजाओ के| अन्य क्षत्रिय सरदार जो रियासतो के शासक नही थे किन्तु वीर और चरित्र से आनबान के धनी थे| उन्होने अपनी बहिन बैटिया की अस्मत बचाने के लिय क्षत्रिय वंश ( कुल छोड़कर ) इन क्षत्रियो से अलग हो गये| यह क्षत्रिय राजा राजस्थान मे अपना वर्चस्व कायम रखने हेतु अपने ही भाइयो को जिन्होंने ख्स्त्रिय कुल से अलग होकर दिल्ली के तत्कालीन बादशाह शहबुदीन मोहम्मद गोरी के पास अपने मुखियाओ को बेचकर कहला भेजा की अब हम क्षत्रियो से अलग हो गये| हमने अपना कार्यक्षेत्र कृषि अपना लिया| बादशाह को चाहिये ही क्या था? उसने सोचा कई बहुत ही अच्छा हुआ क्षत्रिय समाज अब संगठित नहीं रहा, क्षत्रियो कई शक्ति छिन्न भिन्न हो गये| अब आराम से दिल्ली का बादशाह बना रहूगा | विक्रम सम्वत १२५७ अथार्त आज से ८०० वर्ष क्षत्रिय समाज राजपूतो से अलग हुये और कृषि कार्य अपना कर माली बने| सैनी क्षत्रिय जो माली शब्द से पहचाने जाने लगे

MALI SAMAJ JATI  NOHRA  DHARMSHALA 

               NAME                                                            Address                                                        Tel.......
Mali Shikshan Prachar Samiti.      Hinglaj Mandir, Mahavir Nagar,India Coloni,          
                                                         Baapu-Nagar Ahemdabad

Mahatma Jyotiba Phule                Railway Station, Hotel Swagat Ke Samne,
Rashtriya Jagruti Manch              18 Tiwari Compound,Jaipur-6

Mahatma Jyotiba Phule                A-1,Swarup Nagar,Libaspur,Bus-Stand
Rashtriya Jagruti Manch              Ke Samne, G.T. Karnal Road,Delhi Baipass,
                                                        Delhi-42                                                                                          9850412642
 Santoshi-mata Mandir                Sudhad,Gandhinagar Ahemdabad


Sant Likhmidas Education            A-903,Akshardham Tower,Police
Trust, Ahemdabad                        Station Ke Samne,Ahemdabad (Guj.)

Mali Samaj Dharmashala             Damodarji Mandir,Sawai Madhopur

Mali Samaj Dharmashala             Railway Station Ke Samne,Jaipur

Samasta Fulmaliyan Dhar-          Jat Kue Ke Pass,Tisra Chauraha,
mashala                                         Chandpol Bazar,Jaipur

Mali Samaj Dharmashala             Matru Kundiya Tirth Sthan,Chittaud
And Mandir                                    Gadh

Mali Samaj Seva Sans-                 Bus Stand Road,Sirohi                                                                          221201
than Chatravas Evam
Dharmashala

Mali Samaj Atithi Gruha                  Falna, Jila-Pali                                                                                      306716

Mali Samaj Dharmashala                Falna,Jila-Pali                                                                                       236246
 Nimbeshwar Mahadev        
Mandir                                        

Mali Samaj Dharmashala                 Parshuram Mahadev Kund,
                                                            M.P. Sadadi,Jila-Pali

Mali Samaj Dharmashala                 Shr.Somani Chatra Ke Pass Mandir
                                                            M.P.Sarangwas,Jila-pali

Mali Samaj Dharmashala                 Shr Lakshmi Narayan Mandir,
                                                            M.P. Lunava, Jila-Pali

Mali Samaj Dharmashala                 Shr Harganga Mandir, M.P. Bijapur
                                                            Jila-Pali

Mali Samaj-Bhavan                           Balotara

Mali Samaj Dharmashala                  Badganga,Bilada

Mali Samaj Dharmashala                  M.P.Ummedabad,Taha.Sayla,Jila-Pali                                      266380

Mali Samaj Dharmashala                  Sayla,Jila-Jalor                                                                             272363

Mali Samaj Dharmashala                  Sundha Parvat,Jila-Jalor                                                            251171

Mali Samaj Dharmashala                  Raniwada, Jila-Jalor

Mali Samaj Dharmashala                  Badmer Road,Sanchor

Mali Samaj Dhamashala                    Bhinmal,Jila-Jalor

Mali Samaj Dharamshala,                  Sarupganj, Bhavari Road ,near National Highway 14, Sarupganj
...
mali Samaj Dharmashala                   Sheoganj

Mali Samaj Dharmashala                    Jalor                                                                                            226085

Jodhpur-Bhavan Akhil                         Bhimgoda Road,Railway Gufa Ke Samne                         0133-425277    
Bhartiya Mali Samaj Shikshan            Haridwar
Sansthan, Dharmashala                                                                        

Saini Shakya Kushvaha,                      Kamkhal,Haridwar
Dharmashala

Saini Ashram Dharmashala                 Jwalapur,Haridwar

Kuncha Tarachand Saini                      Maman Road, Pahadi Dhiraj,Delhi
Dharmashala

Saini Dharmashala                                Bhongle,Delhi

Saini Dharmashala                                Bhagwanpura Aashram,Delhi

Mali Samaj Bhavan                                Gokul Vatika,Sheoganj (Sirohi)

Shr. Mali Samaj Dharmashala              Jeenana Khetlaji Sagarmal

Mali Samaj Bhavan                                Maliyonki Purani Bagichi Ghat Gate,Jaipur

Mali Samaj Bhavan                                Maliyonki Nai Bagichi,Anandpuri,Jaipur

Mali Samaj Bhavan                                Saini Dharmashala Kapal Nochan,
                                                                  Yamuna Nagar,Hariyana

Mali Samaj Bhavan                                Mali Jati Nohara, Suthar wada,Udaypur

Mali Samaj Bhavan                                Mali Jati Nohara Tekari,Udaypur

Sainik Kshatriya Sansthan                    Nagour
Bhavan & Ramdwar Chenar  

Shr. Mali Saini Samaj Atithi                   Parel, Mumbai
Gruha

Mali Samaj Bhavan                                 Radha-Krishna Mandir,Bhabutji Ka Bera,
                                                                   Sur Sagar, Jodhpur

Mali Samaj Bhavan                                 Ram Mandir Subhash Chowk,Sur Sagar
                                                                   Jodhpur

Mali Samaj Bhavan                                 Hanuman Mandir, Manna Wadi,
                                                                   Sur Sagar, Jodhpur

Mali Samaj Bhavan                                 Mataji Thakur Ka Mandir,Dharmavaton
                                                                   Ka Vas,Sur Sagar, Jodhpur

Mali Samaj Bhavan                                Mataji Ka Mandir, Ranakpur Road,
                                                                  Sadadi

Mali Samaj Bhavan                                Ram Mandir Bera,Sur Sagar,Jodhpur

Mali Samajk Bhavan                              Krishna Mandir Maliyonki Dharmashala

Rajasthan Mali (Saini)Samaj               199,Lakshman Niwas,Room No.32,33,34                              24127738
Shikshan Prachar Samiti                      Second Floor Railway Maidan ke Samne,
                                                                  Dr.Ambedkar Road, Parel ,Mumbai

Saini Samaj   Delhi                                         (Rampura - Tri Nagar) Delhi 9136569186, 9810113814

 (MALIsamaj dharmshala                           bherunala ujjain  Madhya Pradesh › Ujjain
                                                                          priest komal Guru Ram Ghat Ujjain  -9,424,562,232: -9,981,378,328 ...

History Of Mali Samaj:-

        From ancient times Mali Samaj is famous which belongs or has its origin from yadavs. In ancient times this community was known as Malav. From ancient times this community was famous for its bravery, As the time passed this community had to leave sword and entered into agricultural field. Farming and plantation became more popular and source of income to this community. This community became famous for growing plentiful food grains and feeding the entire society. Today also, this community is known for its developed farming . 

        After time passed and the small plant of Mali samaj turned into a big tree and many branches also developed to this tree. Mali samaj was then divided into many into many sub-castes such as Fulmali, Kosimali ,Saine ,Panchakalshemali , Chaukashimali , Jiremali , Telgumali , Lingyatmali, Magar Reddy etc. 

Bravery Tradition : Khaibar khind kings attached and marched into India , at that time Malav fought with him and showed their bravery and in this type, Malav created their Malav Kingdom. Saine family from Malav community ruled Mathura for long time. Great king Prithivraj Chauhan Malav was from Malav community. Today also many Mali brothers are in higher posts in the Army which shows the bravery of the community. 

Tradition of Great Personalities : The Great personalities from the Mali samaj showed a good path to the society which was followed by the various sects of the society. Saint Shiromani Savta Maharaj from Mali community showed all the people the path of Karma and thought the society not to believe unnecessary blindfaiths and superstitions . The God (Panduranga) himself came to meet Savata Mali. In this way , Savata Maharaj showed all the society how forward and practical his teachings were at that time. 

        Mahatma Phule and Kranti Jyoti Savitri bai Phule is the proud of all Mali samaj in the country . The works of Mahatma Phule in the field of education, social and literature were amazing. The work done by Mahatma Phule themselves proved all the country how great he was . Savitri bai Phule also supported and helped entire life to Mahatma Phule in his works. They both together made a new history and that is why we all are very proud of them and also feel proud that we are Mali. Today also , Many of our community members are brightening in various fields such as Politics, Social work, Education , Agriculture etc.
STATE WISE MALI SOCIETY:
Maharashtra :    
(1)Phul(2)Halde(3) Gire(4) Mire(5) Koshimbare
(6) Kache(7) Pade(8) Bawane(9) Adhprabhu(10) Adhshety
(11) Unde(12)Lingyat(13) Murale(14) Kolhat(15) Kadu
(16)Mal(17) Gauda(18) Kulith  
Gujrat:
(1)Jain(2)Malinag(3)Kabir(4)Ramanuj(5)Shaiv
(6) Swami(7) Narayan(8) Vallabh(9) Gurav 
Rajastan:
(1)Raut(2)Kachhi(3) Ghasi(4) Sagar(5) Aahar
(6) Gandh(7) Andi(8) Maina(9) Kahar(10) Khaira
(11) Mahar(12)Vaghel(13) Indi  
Madhyapradesh :
(1)Marar(2)Kosariya(3) Maliya  
Karnataka:
(1)Kamati(2)Kajagi(3) Vakkal(4) Chandragupti(5) Idri
(6)Mal(7)Madik   
West Bengal:
(1) Magasak.    
Bihar:
(1) Karmali    
Orissa:
(1)Gandmali    



Also many Mali samaj lives in different states of the country.

History
Saini Samaj
सैनी भारत की एक योद्धा जाति है. जिन्हें पौराणिक साहित्य में शूरसैनी के रूप में भी जाना जाता है, उन्हें अपने मूल नाम के साथ केवल पंजाब और पड़ोसी राज्य हरियाणा, जम्मू और कश्मीर और हिमाचल प्रदेश में पाया जाता है. वे अपना उद्भव यदुवंशी सूरसेन वंश के राजपूतों से देखते हैं, जिसकी उत्पत्ति यादव राजा शूरसेन से हुई थी जो कृष्ण और पौराणिक पाण्डव योद्धाओं, दोनों के दादा थे. सैनी, समय के साथ मथुरा से पंजाब और आस-पास की अन्य जगहों पर स्थानांतरित हो गए.
प्राचीन ग्रीक यात्री और भारत में राजदूत, मेगास्थनीज़ का परिचय भी सत्तारूढ़ जाती के रूप में जाती से इसके वैभव दिनों में हुआ था जब इनकी राजधानी मथुरा हुआ करती थी. एक अकादमिक राय यह भी है कि सिकंदर महान के शानदार प्रतिद्वंद्वी प्राचीन राजा पोरस, कभी सबसे प्रभावी रहे इसी यादव कुल के थे. मेगास्थनीज़ ने इस जाती को सौरसेनोई के रूप में वर्णित किया है.
राजपूत से उत्पन्न होने वाली पंजाब की अधिकांश जाती की तरह सैनी ने भी तुर्क-इस्लाम के राजनीतिक वर्चस्व के कारण मध्ययुगीन काल के दौरान खेती को अपना व्यवसाय बनाया, और तब से लेकर आज तक वे मुख्यतः कृषि और सैन्य सेवा, दोनों में लगे हुए हैं. ब्रिटिश काल के दौरान सैनी को एक सांविधिक कृषि जनजाति के रूप में और साथ ही साथ एक सैन्य वर्ग के रूप में सूचीबद्ध किया गया था. सैनियों का पूर्व ब्रिटिश रियासतों, ब्रिटिश भारत और स्वतंत्र भारत की सेनाओं में सैनिकों के रूप में एक प्रतिष्ठित रिकॉर्ड है. सैनियों ने दोनों विश्व युद्धों में लड़ाइयां लड़ी और 'विशिष्ट बहादुरी' के लिए कई सर्वोच्च वीरता पुरस्कार जीते. सूबेदार जोगिंदर सिंह, जिन्हें 1962 भारत-चीन युद्ध में भारतीय-सेना का सर्वोच्च वीरता पुरस्कार, परमवीर चक्र प्राप्त हुआ था, वे भी सहनान उप जाती के एक सैनी थे.
ब्रिटिश युग के दौरान, कई प्रभावशाली सैनी जमींदारों को पंजाब और आधुनिक हरियाणा के कई जिलों में जेलदार, या राजस्व संग्राहक नियुक्त किया गया था. सैनियों ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में भी हिस्सा लिया और सैनी समुदाय के कई विद्रोहियों को ब्रिटिश राज के दौरान कारवास में डाल दिया गया, या फांसी चढ़ा दिया गया या औपनिवेशिक पुलिस के साथ मुठभेड़ में मार दिया गया. हालांकि, भारत की आजादी के बाद से, सैनियों ने सैन्य और कृषि के अलावा अन्य विविध व्यवसायों में अपनी दखल बनाई. सैनियों को आज व्यवसायी, वकील, प्रोफेसर, सिविल सेवक, इंजीनियर, डॉक्टर और अनुसंधान वैज्ञानिक आदि के रूप में देखा जा सकता है. प्रसिद्ध कंप्यूटर वैज्ञानिक, अवतार सैनी जिन्होंने इंटेल के सर्वोत्कृष्ट उत्पाद पेंटिअम माइक्रोप्रोसेसर के डिजाइन और विकास का सह-नेतृत्व किया वे इसी समुदाय के हैं.

अजय बंगा, भी जो वैश्विक बैंकिंग दिग्गज मास्टर कार्ड के वर्तमान सीईओ हैं एक सैनी हैं. लोकप्रिय समाचार पत्र डेली अजीत, जो दुनिया का सबसे बड़ा पंजाबी भाषा का दैनिक अखबार है उसका स्वामित्व भी सैनी का है. पंजाबी सैनियों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा अब अमेरिका, कनाडा और ब्रिटेन आदि जैसे पश्चिमी देशों में रहता है और वैश्विक पंजाबी प्रवासियों का एक महत्वपूर्ण घटक है. सैनी, हिंदू और सिख, दोनों धर्मों को मानते हैं. कई सैनी परिवार दोनों ही धर्मों में एक साथ आस्था रखते हैं और पंजाब की सदियों पुरानी भक्ति और सिख आध्यात्मिक परंपरा के अनुरूप स्वतन्त्र रूप से शादी करते हैं. अभी हाल ही तक सैनी कट्टर अंतर्विवाही क्षत्रिय थे और केवल चुनिन्दा जाती में ही शादी करते थे. दिल्ली स्थित उनका एक राष्ट्रीय स्तर का संगठन भी है जिसे सैनी राजपूत महासभा कहा जाता है जिसकी स्थापना 1920 में हुई थी
सैनी उप कुल-
पंजाबी सैनी समुदाय में कई उप कुल हैं.
आम तौर पर सबसे आम हैं: अन्हे, बिम्ब (बिम्भ), बदवाल, बलोरिया, बंवैत (बनैत), बंगा, बसुता (बसोत्रा), बाउंसर, भेला, बोला, भोंडी (बोंडी), मुंध.चेर, चंदेल, चिलना, दौले (दोल्ल), दौरका, धक, धम्रैत, धनोटा (धनोत्रा), धौल, धेरी, धूरे, दुल्कू, दोकल, फराड, महेरू, मुंढ (मूंदड़ा) मंगर, मसुटा (मसोत्रा), मेहिंद्वान, गेहलेन (गहलोन/गिल), गहिर (गिहिर), गहुनिया (गहून/गहन), गिर्ण, गिद्दा, जदोरे, जप्रा, जगैत (जग्गी), जंगलिया, कल्याणी, कलोती (कलोतिया), कबेरवल (कबाड़वाल), खर्गल, खेरू, खुठे, कुहडा(कुहर), लोंगिया (लोंगिये),सागर, सहनान (शनन), सलारिया (सलेहरी), सूजी, ननुआ (ननुअन), नरु, पाबला, पवन, पम्मा (पम्मा/पामा), पंग्लिया, पंतालिया, पर्तोला, तम्बर (तुम्बर/तंवर/तोमर), थिंड, टौंक (टोंक/टांक/टौंक/टक), तोगर (तोगड़/टग्गर), उग्रे, वैद आदि.
हरियाणा में आम तौर पर सबसे आम हैं: बावल, बनैत, भरल, भुटरल, कच्छल, संदल (सन्डल), तोन्दवाल/तदवाल (टंडूवाल) आदि.

**कुछ सैनी उप कुल डोगरा और बागरी राजपूतों के साथ अतिछादन करता है. कुछ सैनी गुटों के नाम जो डोगरा के साथ अतिछादन करते हैं वे हैं: बडवाल, बलोरिया, बसुता, मसुता, धानोता, सलारिया, चंदेल, जगैत, वैद आदि. ऐतिहासिक रूप से क्षेत्रीय सगोत्र विवाह और सामाजिक भेद भी समुदाय के भीतर था. उदाहरण के लिए, होशियारपुर और जालंधर के सैनी इन जिलों से बाहर विवाह के लिए नहीं जाते थे और खुद को उच्च स्तरीय का मानते थे. लेकिन इस तरह के प्रतिबंध हाल के समय में अब ढीले पड़ चुके हैं और अंतर-जातीय विवाह के मामलों में बढ़ोतरी हुई है विशेष रूप से एनआरआई सैनी परिवारों के बीच.